बुधवार, 24 जुलाई 2013

मनुस्मृति और शुद्र


कितनी शर्म की बात है कि लोग अपने आप को शुद्र होने पर भी गर्व करने लगे है।अरे अपने आप को दलित, पिछड़ा, शुद्र समझने वालो, उठो जागो और श्रेष्ठ (आर्य) बनो। इन आंबेदकरवादियों के बहकावे में मत आवो। ये तुम्हें उलुल-जुलूल बाते बता कर तुम्हें दिग्भ्रमित करना चाहते है। मनुवाद-मनुवाद का रट लगाए फिरते है, वास्तव में क्या मनुस्मृति जैसे महान ग्रन्थ को पढ़ने की भी चेष्टा की है।

मनुस्मृति के बारे ये लेख जरुर पढ़े उसके बाद कुछ बोले

मनुस्मृति और शुद्र 

http://agniveer.com/manu-smriti-and-shudras-hi/

इनकी बातो से ही प्रतीत होता है ये विदेशी है और छद्म वेश धारण कर हम हिन्दुओं को तोड़ने का प्रयत्न कर रहे है और धर्म पर बहस करने पर खुल कर बौद्ध धर्म का समर्थन करते है और आम तौर पर अपने लेखो में भी बौद्ध धर्म का समर्थन करते है, आखिर इन बौद्धों को अचानक हमारे दलित भाइयो पर इतना सहानुभूति कैसे उत्पन्न हो गई। तो ना समझने वालो समझ लो कि ये सहानुभूति इसाइयो और मुस्लिमों को भी होती है। और आज कल तो संघ ने इसाइयो के इस सहानुभूति के प्रति अपना अभियान भी छेड़ रखा है।

तो ये सहानुभूति केवल अपने स्वार्थ के लिए है, जब सब अपना सहानुभूति दिखा कर अपना मतावलम्बियो की संख्या को बढ़ा रहे है तो इनमे बौद्ध क्यों पीछे रहे। ये इस मूलनिवासी आन्दोलन के छाया तले हम इस पृथ्वी के श्रेष्ठ धर्म सनातनधर्मावलम्बियो के एकता को तोड़ने का प्रयास कर रहे है।

जहाँ तक बौद्ध धर्म का सवाल है वह पुर्णतः "नास्तिक" धर्म है। नास्तिक मतलब जो इश्वर की सत्ता को ही नकार दे। बौद्ध धर्म के अनुसार इश्वर का आस्तित्व ही नहीं है, यह जगत अपने आप क्रियान्वित हो रही है।

ज्यादा बौद्ध, जैन चारवाक इत्यादि नास्तिक धर्म के बारे में जानने के लिए सत्यार्थ प्रकाश के 12वे सम्मुलास का अध्ययन कीजिए।

तो भाइयो उस परमपिता, दयालु,  न्यायकारी सच्चिदानन्द परमात्मा को ही नकारने वाले तुमको गलत-गलत जानकारिया दे कर दिग्भ्रमित कर रहे है। तुम लोग उन नास्तिको के बहकावे में मत आवो।

ये माना की इस देश में कुछ समय पूर्व तक घोर जाती व्यवस्था थी वे भी इन विदेशियों के संयंत्र के कारण ही थी। किसी भी गलत कार्य को रोकने का जिम्मा शाशक का होता है और जब शुरुआत में यह जाती प्रथा चल पड़ी तब जान बुझ कर विदेशी शाशको ने इस पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की क्योकि उनका तो मूल मन्त्र था फुट डालो राज करो। और इस बिच स्वार्थियो का मन बढ़ता चला गया। और यह घोर जन्मना जाती व्यवस्था में बदल गई। और जब इन विदेशियों की ताकत चली गई तो वे आपस में डाली गई फुट का लाभ उठाना चाह रहे है भाई भाई में नफरत फ़ैलाने का काम कर रहे है।

तो ऐसा नहीं है कि हम जाति व्यवस्था के समर्थक है। बल्कि इसको हम खत्म करना चाहते है।

जरा आप ही सोचिए जाति व्यवस्था कब खत्म मानी जाएगी, जब पूरा हिंदू समाज एक हो जाएगा किसी में भी उच-नीच का भाव नहीं रहेगा। सभी एक दुसरे से प्रेम करेंगे। खास कर सभी अपने-अपने कर्मो के कारण पहचाने जाएंगे न की किसी कुल खानदान में जन्म लेने पर।

तो ये विदेशी उल्टे कर रहे है हमलोगो के बिच नफरत फैला रहे है। हमलोगों को जन्मना ब्राम्हणों और जन्मना दलितों के बिच बाँट रहे है। है न मजेदार बात ये तो खुद हम लोगो को जन्मना दलित और जन्मना ब्राम्हण में बाँट रहे है यह कह कर की तुम मूल निवासी हो दलित हो और वह ब्राम्हण है तुम्हारा इतने साल से शोषण किया है। जबकि मनुस्मृति का यह कह कर दहन कारते है की यही जन्मना जाती का उत्पादक है(बिना अर्थ समझे)। जहाँ तक आर्य और मूलनिवासी का बात है यह आज से लगभग तीस वर्ष पहले ही सिद्ध हो चूका है कि आर्य विदेशी नहीं थे बल्कि आर्य का मतलब श्रेष्ठ होता है। इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है की आर्य विदेशी थे। यह मात्र एक संयत्र के तहत ही रचा गया था।

   तो जाती व्यवस्था को खत्म करने के लिए उनको तो ये कहना चाहिए था कि तुम भी अन्य किसी भी भाई से कम नहीं हो। तुम भी विद्या अर्जन करके ब्राम्हण बन सकते हो, शास्त्र विद्या जान कर क्षत्रिय बन सकते हो व्यापर करके वैश्य बन सकते हो और जो ब्राम्हण नीच कर्म करता है तो वह शुद्र बन जाएगा।

तो ऐसा न कर के वे चाहते है तुम अपने आप को नीच जाति का समझते रहो, अपने आप को हजार वर्षो से शोषित समझते रहो और नहीं तो वे तुम में जातीय कट्टरता भर रहे है ताकि तुम अपनी पहचान निचले जाती में ही समझो। इससे ज्यादा शर्म की क्या बात होगी तुम लोगो के लिए। अब तो ये तुम लोगो को निर्णय लेना होगा की हमे अपना हक श्रेष्ठ बन कर लेना होगा या अपने आप को पिछड़ा या नीच समझ कर।

और हम अंत में यही कहना चाहते है कि उठो, जागो और श्रेष्ठ (आर्य) बनो।

 मनुस्मृति और शुद्र 

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